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Explained: दिल्ली समेत देश के कई राज्य क्यों बन रहे हैं आग का गोला?

ठंड का मौसम खत्म होने के साथ ही गर्मी आई और एकाएक सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. वैसे तो देश के ज्यादातर हिस्सों का हाल कमोबेश एक जैसा है लेकिन दिल्ली की हालत और खराब है. इस बीच भारत समेत दक्षिण एशिया में गर्मी का भयंकर प्रकोप होने वाला है, ये बात एक स्टडी में निकलकर आई. अमेरिका की ओक रिज नेशनल लैबोरेटरी (Oak Ridge National Laboratory) में निकलकर आया कि इस साल भयानक गर्मी पड़ेगी और दक्षिण एशियाई देशों में जानलेवा लू का प्रकोप देखने को मिलेगा.

इन क्षेत्रों में गर्मी की मार रहेगी
शोध के मुताबिक इस बार तेज गर्मी में काम करना असुरक्षित साबित होगा. गर्मी के कारण जिन जगहों पर सबसे ज्‍यादा काम करने में दिक्‍कत आएगी, उनमें उत्‍तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इन जगहों के साथ तटीय इलाकों में कोलकाता, मुंबई एवं हैदराबाद जैसे शहरी इलाके भी शामिल हैं, जहां पर गर्मी के कारण काम करने में दिक्‍कत का सामना करना पड़ सकता है. यहां तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, जिससे लू चलती रहेगी और हर साल की अपेक्षा ज्यादा मौतें होंगी. ये शोध जर्नल जियोफिजिक्स रिसर्च लेटर में प्रकाशित हुआ था.बता दें कि लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज (Lancet Countdown on Health and Climate Change) की एक अन्य रिपोर्ट में साफ हुआ कि साल 2018 में भारत में गर्मियों के दौरान 31000 से ज्यादा मौतें हुईं. इससे पहले और सबसे पहला स्थान चीन का रहा, जहां उसी साल 62000 मौतें हीट स्ट्रोक यानी लू लगने से हुईं.

यहां ये समझना होगा कि हीट स्ट्रोक के तीन चरण होते हैं
पहला हीट सिंड्रोम है, जिसके गर्मी के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है. साथ ही घबराहट और बेचैनी होती है. दूसरा स्टेज अपेक्षाकृत गंभीर है, जिसमें बुखार, मांसपेशियों में दर्द के लक्षण आ जाते हैं. थकान से चक्कर आने लगते हैं. इसके बाद है तीसरा और सबसे खतरनाक स्टेज. इसमें शरीर का तापमान नियंत्रण से बाहर हो जाता है. पसीना आना बंद हो जाता है और शरीर ठंडा नहीं रह पाता. तब लगातार बुखार बढ़ता जाता है, जिसका असर तंत्रिका तंत्र पर भी हो सकता है. इसी दौरान सही समय पर इलाज न मिलने से मौत भी हो सकती है.

तो आखिर क्या वजह है जो तापमान बढ़ता जा रहा है?
इसकी एक वजहें हैं, जिनके बारे में हम एक-एक करके जानते हैं. सबसे पहले तो बात करते हैं बारिश पर. देश में गर्मी बढ़ते चले जाने का सीधा संबंध कम बारिश से है. हमारे यहां बारिश का बड़ा हिस्सा मानसूनी बारिश का होता है. साल 2014 और 2015 के दौरान मानसूनी बारिश औसत से कम हुई. बारिश कम होने से ही औसत तापमान में बढ़ोतरी हो रही है. यह स्थिति हर साल के साथ और खराब हो रही है. इससे न केवल जलस्तर गिर रहा है, बल्कि तापमान भी बढ़ रहा है.

कम बारिश के लिए अन-नीनो को कारण माना जाता है
प्रशांत महासागर में जल के औसत तापमान में बढ़ोतरी को अल-नीनो प्रभाव कहा जाता है. इसके प्रभाव से दुनिया भर में मौसम चक्र बदल जाता है और सूखे और बारिश जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है. इसी के असर के कारण देश में मानसूनी बारिश में काफी कमी देखने में आई है. जबकि अमेरिका में बर्फीला तूफान और ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ जैसे हालात देखने में आए.

ग्लोबल वॉर्मिंग पर शोध
इंसानी हरकतों जैसे लगातार कारखाने लगाना, खनन और पेड़ों को काटने की वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ती जा रही है. ये केवल निबंधों में लिखने का विषय नहीं रहा, बल्कि ये गर्मी हम वाकई अपने आसपास महसूस कर रहे हैं. इसी ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ध्रुवीय इलाकों की बर्फ पिघल रही है. साल 1994 से 2017 के बीच 280 लाख टन बर्फ पिघल गई, जिससे समुद्री जलस्तर बढ़ा और साथ ही उसका तापमान भी बढ़ रहा है. लीड्स यूनिवर्सिटी में हुई इस रिसर्च में पाया गया कि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की सतह के अतिरिक्त पूरी दुनिया में 2,15,000 बर्फीले पहाड़ मौजूद हैं और हाल के दशक में इन सभी की बर्फ पिघलने की गति बढ़ती गई है. ये भी तापमान बढ़ा रहा है.

दिल्ली में क्यों बढ़ रहा तापमान
इसके अलावा अगर दिल्ली में तापमान बढ़ने की बात करें तो यहां पर कंक्रीट का बढ़ना भी एक कारण है. बीते दशकभर में ही यहां निर्माण कार्य बढ़ा है. तेजी से इमारतें और व्यावसायिक संस्थान बन रहे हैं. कंक्रीट के कारण दो तरीके से तापमान बढ़ा. एक ये सूरज की गर्मी को ज्यादा परावर्तित करता है और दूसरा इसके कारण बारिश होने पर जमीन के नीचे पानी का रिसाव न हो पाने के कारण भंडारण नहीं हो पाता है. इससे जमीन भी गर्म और सख्त रहती है. इससे भी ऐसी जगहों पर रहने वालों को ज्यादा गर्मी महसूस होती है. जैसे दिल्ली में ही देखें तो यहां अलग-अलग इलाकों का तापमान अलग है, जैसे दिल्ली के दूसरे इलाकों की तुलना में लोधी रोड, संजय वन जैसे इलाकों में तापमान हमेशा 2 से 4 डिग्री तक कम रहता है क्योंकि यहां कंक्रीट का वैसा जंगल नहीं है, बल्कि पेड़-पौधे हैं.

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